वेब सीरीज: पंचायत सीजन-4
कलाकार: रघुबीर यादव, नीना गुप्ता, जितेंद्र कुमार, फैसल मलिक, चंदन रॉय, गुर्देश कुमार, सुनीता राजवार, पंकज झा, सान्विका, अशोक पाठक, बुल्लू कुमार, स्वानंद किरकिरे आदि।
निर्देशक: दीपक कुमार मिश्रा
क्रिएटर: टीवीएफ
लेखक: चंदन कुमार
प्लेटफॉर्म: प्राइम वीडियो
अवधि: 31-46 मिनट, कुल 8 एपिसोड्स
वर्डिक्ट: **1/2 (ढाई स्टार)
मनोज वशिष्ठ, मुंबई। Panchayat Season 4 Review: अमेजन प्राइम वीडियो की कल्ट सीरीज पंचायत का चौथा सीजन आ गया। पूरा सीजन देखने के बाद ऐसा महसूस होता है कि लेखकों ने इसे ऑटो पायलट मोड पर छोड़ दिया है। किरदारों का खाका पहले से तय है। बस कहानी आगे बढ़ाने के लिए कुछ घटनाएं चाहिए। इन्हीं घटनाओं में पंचायत के किरदारों को पिरोना है।
यह सीजन फुलेरा गांव में पंचायत चुनावों के इर्द-गिर्द घूमता है, जहां मंजू देवी (नीना गुप्ता) और क्रांति देवी (सुनिता राजवार) के बीच प्रधान की कुर्सी के लिए जोरदार टक्कर देखने को मिलती है।
अभिषेक त्रिपाठी उर्फ सचिव जी (जितेंद्र कुमार) अपनी CAT परीक्षा की तैयारी और रिंकी (सान्विका) के साथ अपने रिश्ते की उलझनों के बीच फंसे हैं।
इसके अलावा, भूषण (दुर्गेश कुमार) और विधायक चंद्रकिशोर सिंह (पंकज झा) की सियासी चालें कहानी को नया मोड़ देती हैं। सीजन 3 के क्लाइमैक्स में प्रधान बृजभूषण दुबे (रघुबीर यादव) पर गोली चलाने का रहस्य और अभिषेक के भविष्य का सवाल इस सीजन में जवाब तलाशते रहते हैं।
सियासी ड्रामे ने छीनी पंचायत की मासूमियत
देश की संसद में तय होने वाली लोकतांत्रिक व्यवस्था की सबसे छोटी ईकाई पंचायत ही है। देश की राजनीति के तौर-तरीकों की एक झलक फुलेरा के चुनाव में मिलती है।
विरोधी दलों के वफादारों को तोड़ने की कोशिश, मुद्दों को लपकना और झपटना, नॉमिनेशन से पहले रेड डलवाकर प्रतिद्वंद्वी को कमजोर करने की साजिश, वोटरों में वोट की उम्मीद में रेवड़ियां बांटना, विरोधियों पर छींटाकशी… जो कुछ भी आप रोजमर्रा की राजनीति में सुनते-देखते हैं, चुनावों के समय फुलेरा में वो सब नजर आता है, मगर हास्य के तड़के के साथ।
इस बार कहानी में ठहराव ज्यादा दिखता है, आगे बढ़ती नहीं दिखती। सारा फोकस चुनावी ड्रामा पर है। सियासी दांवपेंच और चुनाव जीतने के लिए पक्ष-विपक्ष के हथकंडों में ताजगमी नहीं है और ना ही भावनात्मक गहराई है।
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सियासी बोझ तले दबा चौथा सीजन ह्यूमर के मोर्चे पर कमजोर नजर आता है। चूंकि, आप किरदारों को पहचान चुके हैं और उन्हें पसंद करते हैं तो सीजन आपको उठने नहीं देता।
प्रधान मंजू देवी के पिता का फुलेरा आना कहानी में कोई योगदान नहीं करता। इस ट्रैक से ट्विस्ट आने की उम्मीद की जा रही थी। एक बात जरूरी है कि लेखकों ने भूषण और प्रधान जी के बीच सियासी चालों को इस तरह दिखाया है कि भूषण एक तगड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में नजर आता है। यह भाग इस तरह लिखे गये हैं कि क्लाइमैक्स में जब क्रांति देवी जीतती है तो हैरानी नहीं होती।
इस बार भी अभिषेक और रिंकी की प्रेम कहानी कुछ खास आगे नहीं बढ़ पाती। प्रधान जी और विधायक के बीच टकराव के ट्रैक को भी इस बार ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई है।
एक अंडर करेंट हास्य पंचायत सीरीज की यूएसपी है, जो चौथे सीजन में मिसिंग रहता है। किरदारों की प्रस्तुति से दर्शक भलीभांति परिचित हो चुके हैं, लिहाजा अब वो भी हास्य रस पैदा करने में कामयाब नहीं रहता। देख रहा बिनोद… जैसी मीम मैटेरियल लाइंस इस सीजन में मिसिंग हैं।
क्रांति देवी की जीत से मिलेगा अगले सीजन को विस्तार
मंजू देवी की हार और क्रांति देवी की जीत ने एक और सीजन के लिए दरवाजे खोल दिये हैं। भूषण के पंचायत ऑफिस में आ जाने से कहानी के विस्तार की सम्भावना बढ़ गई है। अगले सीजन में (अगर आता है) दर्शकों को भूषण के बदले का इंतजार रहेगा।
सांसद जी ने प्रह्लाद पांडेय को विधायकी का टिकट ऑफर कर दिया है। यह प्लॉट भी आगे चलकर दिलचस्प हो सकता है। अगला सीजन चाहे जैसे आगे बढ़े, मगर इतना तय है कि अब पंचायत की मासूमियत चली गई है और यह शो सियासी संजीदगी के साथ आगे बढ़ेगा।
दृश्यों में कलाकारों के भावों पर कैमरा देर तक रहने की वजह से सीन लम्बे लगते हैं, जिससे एडिटिंग में कसावट की कमी महसूस होती है। इसकी वजह से कहानी का प्रवाह बाधित होता है। कुछ जगहों पर ऐसा लगता है कि दृश्यों को खींच रहे हैं।
अभिनय और फुलेरा का चरित्र बना सीजन की ताकत
पंचायत के सभी कलाकार अपने किरदारों में पूरी तरह ढल चुके हैं और यही इसकी सबसे बड़ी ताकत है। जितेंद्र कुमार सचिव जी के रूप में अपनी सादगी और गंभीरता से प्रभावित करते हैं। हालांकि, इस किरदार के एग्रेशन को बढ़ा दिया है।
मंजू देवी इस बार ज्यादा आत्मविश्वास के साथ उभरती हैं, जो इस किरदार की प्रगति को दिखाता है। नीना गुप्ता ने मंजू देवी के किरदार की जर्नी को शिद्दत से पेश किया है। रघुबीर यादव (प्रधान जी), फैसल मलिक (प्रहलाद), और दुर्गेश कुमार (भूषण) अपने किरदारों में जान डालते हैं।
बिनोद (अशोक पाठक) और माधव (बुल्लू कुमार) जैसे सहायक किरदारों को इस बार ज्यादा स्क्रीन टाइम और गहराई मिली है, जो कहानी को दिलचस्प बनाता है।
फुलेरा गांव अपने आप में एक किरदार बन चुका है। गांव की दीवारों पर निखे नारे, लड्डू विवाद और स्वच्छता अभियान के दृश्यों मनोरंजन करते हैं।
देखें या ना देखें?
पंचायत सीजन 4 अपने कलाकारों और फुलेरा की जिंदगी की वजह से रोककर रखता है। तीन सीजन देख चुके हैं तो कुछ मजेदार ट्विस्ट की उम्मीद उठने नहीं देती। अगर, आप पंचायत देखते आ रहे हैं तो चौथा सीजन भी देख लेंगे।