Saiyaara Review: ‘आशिकी 3’ का इंतजार ‘सैयारा’ पर हुआ खत्म, ‘तन्हा तारे’ की कहानी से इंडस्ट्री को मिले दो सितारे

Saiyaara movie review. Photo- Instagram
फिल्म: सैयारा (Saiyaara)

कलाकार: अहान पांडेय, अनीत पड्डा, वरुण बडोला, गीता अग्रवाल, आलम खानस राजेश कुमार आदि। 

निर्देशक: मोहित सूरी 

लेखक: संकल्प सदाना, रोहन शंकर 

निर्माता: आदित्य चोपड़ा 

अवधि: 156 मिनट 

वर्डिक्ट: *** (तीन स्टार)

मनोज वशिष्ठ, मुंबई। Saiyaara Review: किंग ऑफ रोमांस कहे जाने वाले यश चोपड़ा की विरासत सम्भाल रहे आदित्य चोपड़ा ने नये चेहरों अहान पांडेय और अनीत पड्डा को लॉन्च करने के लिए बॉलीवुड के एक और रोमांटिक फिल्मों के उस्ताद मोहित सूरी पर दांव लगाया।

यह गठबंधन दिलचस्प इसलिए बना, क्योंकि यशराज बैनर और मोहित सूरी, रोमांटिक फिल्मों के अलग स्कूलों से आते हैं। यशराज फिल्म्स की बुनियाद रखने वाले यश चोपड़ा अगर रोमांटिक फिल्मों की Gen X हैं तो मोहित इस जॉनर की Gen Z हैं।

मगर, सैयारा पूरी तरह से मोहित की फिल्म है। कहीं भी यशराज फिल्म्स की छाप नजर नहीं आती। आदित्य ने सैयारा को पूरी तरह मोहित के हवाले कर दिया, जिसका नतीजा यह रहा कि आशिकी 2 के बाद आशिकी 3 का इंतजार कर रहे दर्शकों को सैयारा मिल गई।

इसके साथ ही भारतीय सिनेमा को मिले हैं दो नये सितारे। यशराज बैनर ने कई कलाकारों को बॉलीवुड में ब्रेक दिया है, मगर आदित्य ने जितनी दिलचस्पी अहान पांडेय में ली, शायद ही किसी अन्य स्टार किड में दिखाई हो, जिसका असर अहान की स्क्रीन प्रेजेंस में नजर भी आता है।

मोहित सूरी के खांचे की फिल्म सैयारा कर्णप्रिय संगीत, प्रेम में उछाह और बिछोह की भावनाओं के जरिए दर्शक के दिल में उतरने की कामयाब कोशिश करती है। नये कलाकारों की मौजूदगी इस साधारण कहानी में ताजगी भरती है।

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क्या है सैयारा की कहानी?

सैयारा की कहानी वाणी बत्रा (अनीत पड्डा) और कृष कपूर (अहान पांडे) के इर्द-गिर्द घूमती है। वाणी एक ऐसी लड़की है, जो एक टूटे हुए रिश्ते के दर्द से उबरने की कोशिश कर रही है। कविताएं लिखती है, मगर खुद तक रखती है। रिश्ते में चोट खाने के बाद अपनी कविताओं को भूल चुकी है।

दूसरी ओर, कृष एक उभरता हुआ सिंगर है, जिसके तेवर उसके हुनर की तरह ही तीखे हैं। वजह कुछ अपने संघर्ष हैं। टूटे दिलवाले दो लोगों की मुलाकात तब होती है, जब वाणी एक जर्नलिस्ट के तौर पर काम शुरू करती है और कृष उसकी कविता पढ़कर उससे गीत लिखने की गुजारिश करता है।

संगीत और कविता के जरिए दोनों करीब आते हैं और उनकी प्रेम कहानी शुरू होती है। लेकिन, जैसा कि हर प्रेम कहानी में होता है। राह में कई रुकावटें आती हैं- पारिवारिक दबाव, निजी असुरक्षाएं और एक ट्रेजडी। क्या वाणी और कृष अपने प्यार को बचा पाएंगे? इस सवाल का जवाब है सैयारा।

कैसे हैं कहानी, स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स?

कहानी में नयापन नहीं है, लेकिन यह भावनाओं के उतार-चढ़ाव और परिचित किरदारों के जरिए देखने वालों को बांधकर रखती है। यह एक ऐसी प्रेम कहानी है, जो आज की पीढ़ी के रिश्तों की जटिलताओं को दर्शाती है।

स्क्रीनप्ले संकल्प सदाना और संवाद रोहन शंकर ने लिखे हैं। हालांकि, इनमें मोहित सूरी की पूर्व में आई फिल्मों की छाप साफ दिखती है। यह ड्रामाटिक और इमोशनल है, लेकिन कई जगह आशिकी 2 और एक विलेन जैसी उनकी पुरानी फिल्मों की याद भी दिलाती है।

पहले हाफ में किरदारों का परिचय और उनकी केमिस्ट्री को स्थापित करने में समय लिया गया है, जो थोड़ा धीमा लग सकता है, लेकिन इंटरवल के बाद कहानी रफ्तार पकड़ती है और इमोशनल सीन आपको बांध लेते हैं।

कुछ दृश्य, जैसे वाणी का अतीत और कृष का गुस्सा ओवर-ड्रामाटिक लगते हैं, जो शायद जानबूझकर जोड़े गए हैं, ताकि मास अपील बनी रहे। डायलॉग्स दिल को छूते हैं, खासकर वे जो प्रेम और दर्द को व्यक्त करते हैं।

उदाहरण के लिए, एक सीन में वाणी कहती है, “प्यार वो नहीं, जो तुम्हें पूरा करता है, बल्कि वो जो तुम्हें टूटने से बचाता है।” ऐसे डायलॉग्स फिल्म को गहराई देते हैं। हालांकि, कुछ लाइंस पुरानी लगती हैं, जो आज की जनरेशन से थोड़ा कम कनेक्ट करते हैं।

कुल मिलाकर, स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स अच्छे हैं, लेकिन अगर कुछ सीन को और टाइट किया जाता तो प्रभाव और बढ़ता।

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कैसा है अहान और अनीत का अभिनय?

अब बात फिल्म की मुख्य जोड़ी अहान और अनीत के अभिनय की करते हैं, क्योंकि सैयारा की सबसे बड़ी देन यही दोनों हैं। काजोल के साथ सलाम वेंकी में छोटी-सी भूमिका में आईं अनीत के अभिनय को फैलाव नित्या मेहरा की वेब सीरीज बिग गर्ल्स डोन्ट क्राइ से मिला।

इस औसत शो में पड्डा अपनी अभिनय क्षमता से दूसरों से अलग खड़ी नजर आई थीं और पैनी नजर रखने वालों ने तब ही से अनीत की नियति को भांप लिया था, जिसे बाद में यशराज की कास्टिंग डायरेक्टर शानू शर्मा ने भी महसूस किया और अनीत सैयारा की वाणी बनी।

फिल्म में अनीत ने अपने अभिनय से वाणी के किरदार में जान डाली है। उनकी स्क्रीन प्रेजेंस शानदार है। खूबसूरती के साथ मासूमियत का सही अनुपात है। उनके करियर की लम्बाई के लिहाज से यह किरदार थोड़ा मुश्किल था, मगर उलझे हुए कैरेक्टर को वाणी ने हाथ से फिसलने नहीं दिया।

पर्दे पर आने से पहले यशराज फिल्म्स की ट्रेनिंग में रहे अहान की सबसे बड़ी खूबी उनका दृश्य पर अपना नियंत्रण करना कही जा सकती है। उनकी पर्सनैलिटी में एक स्वाभाविक एरोगेंस है, जो शायद इरादतन नहीं है, मगर वो महसूस होती है। कृष जैसे किरदारों में अहान की यह खूबी उनकी ताकत बन गई है।

इसीलिए, अहान को पर्दे पर सॉफ्ट होते हुए देखना अच्छा लगता है। उन भावनात्मक दृश्यों में उनकी अदाकारी ओवर नहीं लगती। कृष के गुस्से और महत्वाकांक्षों को दिखान में उनका आत्मविश्वास झलकता है। शारीरिक भाषा किरदार कक कॉम्प्लीमेंट करती है।

अनीत के साथ अहान की कैमिस्ट्री, सैयारा के असर का गाढ़ करती है। मोहित के निर्देशन की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने नवोदित कलाकारों से ऐसे काम किया है, जैसे वे सदियों से यही करते आ रहे हों।

दोनों बेहद नेचुरल लगते हैं। सपोर्टिंग कास्ट में वरुण बडोला (कृष के पिता), गीता अग्रवाल (वाणी की मां) और राजेश कुमार (वाणी के पिता) ने दोनों न्यूकमर्स का भरपूर साथ दिया है। आलम खान (केवी) भी अपने छोटे से रोल में छाप छोड़ते हैं।

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कैसा है मोहित का निर्देशन?

मोहित, प्रेम में पीड़ा की परम्परा को निभाने वाले निर्देशक हैं और इसके लिए वो संगीत को साधन बनाते हैं। यहां भी उनका यह फॉर्मूला काम कर गया है। संगीत भावनाओं के ओवर रिएक्शन को भी साध लेता है और दर्शक दृश्य में डूब जाता है।

फिल्म को समसामयिक बनाने में सिनेमैटोग्राफी और प्रोडक्शन डिजाइन विभाग का भी बराबर सहयोग मिला है।

कैसा है सैयारा का संगीत?

सैयारा का संगीत इसकी रूह है, जैसा कि मोहित की लव स्टोरीज में अक्सर होता है। उन्होंने भावनाओं के ज्वार-भाटे को दिखाने के लिए संगीत का सही समय पर सही जगह इस्तेमाल किया है। फहीम अब्दुल्लाह, तनिष्क बागची और सचेत-परंपरा जैसे संगीतकारों ने फिल्म के साउंडट्रैक को सुनने लायक बनाया है, जिससे ठहराव महसूस नहीं होता।

जॉन स्टुअर्ट एडुरी का बैकग्राउंड स्कोर कहानी के इमोशंस को और गहरा करता है।

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क्यों देखें Saiyaara?

अहान और अनीत की ताजगी भरी जोड़ी, मोहित सूरी का इमोशनल टच और खूबसूरत गाने इस फिल्म को खास बनाते हैं। आज की पीढ़ी इससे जुड़ाव महसूस कर सकती है। यह सिंगल स्क्रीन थिएटर्स की फिल्म नहीं है। क्लाइमैक्स थोड़ा और चुस्त हो सकता था। पर कोई बात नहीं, अगर क्लाइमैक्स तक आते-आते आप फिल्म देख रहे हैं तो फिर पैसा वसूल है।