दिग्गज अभिनेत्री संध्या शांताराम का 87 साल की उम्र में निधन, फिल्म इंडस्ट्री ने दी श्रद्धांजलि

Sandhya Shantaram death. Photo- X

मुंबई। Sandhya Shantaram Death: भारतीय फिल्म जगत की दिग्गज अभिनेत्री संध्या शांताराम का 4 अक्टूबर को 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वह प्रसिद्ध फिल्मकार वी शांताराम की पत्नी थीं और अपनी नृत्य कला तथा अभिनय के लिए जानी जाती थीं। उनके निधन से बॉलीवुड और मराठी सिनेमा में शोक की लहर दौड़ गई है।

संध्या शांताराम का निधन उम्र संबंधी बीमारियों के कारण हुआ। उनका अंतिम संस्कार शनिवार को मुंबई के शिवाजी पार्क श्मशान घाट या वैकुंठ धाम में संपन्न हुआ। परिवार के सदस्यों और करीबी मित्रों ने उन्हें अंतिम विदाई दी।

फिल्म जगत से श्रद्धांजलि

संध्या शांताराम के निधन पर बॉलीवुड के कई दिग्गजों ने शोक व्यक्त किया। फिल्मकार मधुर भंडारकर समेत कई हस्तियों ने सोशल मीडिया पर उन्हें श्रद्धांजलि दी। भंडारकर ने कहा, “संध्या जी की फिल्में हमें हमेशा प्रेरित करती रहेंगी। भारतीय सिनेमा ने एक रत्न खो दिया।” अन्य कलाकारों ने भी उनके योगदान को याद किया, जो नृत्य और ड्रामा के क्षेत्र में अविस्मरणीय है।

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अभिनय और नृत्य से बनाई पहचान

संध्या शांताराम का जन्म 16 सितंबर 1938 को विजया देशमुख के रूप में कोच्चि, भारत में हुआ था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत नृत्यांगना के रूप में की और जल्द ही हिंदी और मराठी फिल्मों में अपनी जगह बनाई।

वह वी. शांताराम की तीसरी पत्नी थीं और उनके साथ कई यादगार फिल्मों में काम किया। संध्या जी की नृत्य शैली क्लासिकल भारतीय नृत्य पर आधारित थी, जो उनकी फिल्मों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती थी।

संध्या शांताराम ने 1950 और 1960 के दशक में कई हिट फिल्मों में काम किया। उनकी प्रमुख फिल्मों में ‘झनक झनक पायल बाजे’ (1955), ‘दो आंखें बारह हाथ’ (1957) और मराठी क्लासिक ‘पिंजरा’ (1972) शामिल हैं।

‘झनक झनक पायल बाजे’ में उनके नृत्य प्रदर्शन ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई, जिसमें उन्होंने गोपीकृष्ण के साथ जोड़ी बनाई। ‘पिंजरा’ जैसी फिल्मों ने मराठी सिनेमा में उनकी अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने अपने पति वी शांताराम की कई फिल्मों में मुख्य भूमिकाएं निभाईं और उनकी रचनात्मकता का हिस्सा बनीं।

उनकी अभिनय शैली भावपूर्ण और नृत्य-केंद्रित थी, जो उस दौर की फिल्मों को एक अनोखा आकर्षण प्रदान करती थी। संध्या जी ने फिल्मों के अलावा थिएटर और अन्य कलात्मक गतिविधियों में भी योगदान दिया, जिससे वह एक बहुमुखी कलाकार के रूप में जानी गईं।

संध्या शांताराम का जाना भारतीय सिनेमा के एक सुनहरे युग का अंत है। उनकी फिल्में और प्रदर्शन आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।