Filmistan Studio: 183 करोड़ में बिका मुंबई का 80 साल पुराना आइकॉनिक स्टूडियो! अशोक कुमार और शशाधर मुखर्जी ने रखी थी बुनियाद

Filmistan Studio sold for redevelopment. Photo- X

मुंबई। Filmistan Studio: आजादी की लड़ाई चरम पर थी। अंग्रेजों के गुलामी से निकलने के लिए देश का नौजवान छटपटा रहा था। सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में आजाद हिंद फौज का गठन कर लिया था। उधर, हिंदी सिनेमा में एक बड़ा बदलाव अंगड़ाई ले रहा था।

हिमांशु रॉय के निधन के बाद बॉम्बे टॉकीज पूरी तरह से देविका रानी के नियंत्रण में आ गया था। उसी दौरान कुछ अनबन हुई और स्टूडियो के लीड स्टार अशोक कुमार और शशाधर मुखर्जी (काजोल के दादा) ने बॉम्बे टॉकीज छोड़ दिया।

इन दोनों ने ज्ञान मुखर्जी और राय बहादुर चुन्नीलाल के साथ मिलकर गोरेगांव में अपना अलग स्टूडियो खोल दिया, जिसने नाम मिला- फिल्मिस्तान। स्टूडियो बनाने में हैदराबाद के निजाम उस्मान अली खान ने आर्थिक मदद की थी।

वही फिल्मिस्तान 82 साल की उम्र में मुंबई के एक बड़े बिल्डर की मिल्कियत बन गया है। इसके साथ ही हिंदी सिनेमा की एक शानदार विरासत इतिहास के पन्नों में सिमटकर रह गई है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो 183 करोड़ रुपये में बिके फिल्मिस्तान में अब आशियाने बनाये जाएंगे।

कुछ साल पहले चेम्बूर इलाके में लीजेंड्री आरके स्टूडियो के बिकने के बाद फिल्म इंडस्ट्री के लिए यह दूसरा झटका है। यह सिर्फ फिल्म प्रोडक्शन के स्टूडियो नहीं हैं, बल्कि देश में फिल्मों के इतिहास के मील के पत्थर हैं।

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शहीद समेत कई यादगार फिल्मों का निर्माण

फिल्मिस्तान स्टूडियो गोरेगांव पश्चिम में एसवी रोड पर 5 एकड़ में बनाया गया था, जिसमें सात शूटिंग फ्लोर, एक मंदिर और बगीचा शामिल हैं, जो आउटडोर शूटिंग के लिए आइडियल माना जाता है। शुरुआत में फिल्मिस्तान एक प्रोडक्शन हाउस के रूप में कार्य करता था, जो ना केवल शूटिंग के लिए जगह देता था, बल्कि स्वयं फिल्में भी बनाता था।

इसकी पहली फिल्म चल चल रे नौजवान (1944) थी, जिसमें अशोक कुमार और नसीम बानो ने अभिनय किया था। 1940 और 1950 का दशक1940 और 1950 का दशक फिल्मिस्तान का गोल्डन पीरियड था।

इस दौरान स्टूडियो ने कई ब्लॉकबस्टर फिल्में बनाईं, जिनमें शहीद (1948), जागृति (1954), मुनीमजी (1955), पेइंग गेस्ट (1957), और नागिन (1954) शामिल हैं। ये फिल्में न केवल व्यावसायिक रूप से सफल रहीं, बल्कि इन्होंने भारतीय सिनेमा की कहानी कहने के अंदाज को भी नया आयाम दिया।

कई दिग्गज लेखक-निर्देशकों को दिया ब्रेक

शशाधर मुखर्जी स्टूडियो को क्रिएटिव डायरेक्शन दे रहे थे, जबकि चुन्नीलाल ने फाइनेंस को मजबूत किया। इस दौरान एस.डी. बर्मन और हेमंत कुमार जैसे संगीतकारों ने भी फिल्मिस्तान के साथ काम किया, जिससे इसकी संगीतमय विरासत और समृद्ध हुई।

फिल्मिस्तान ने नासिर हुसैन जैसे लेखकों और निर्देशकों को भी मंच प्रदान किया, जिन्होंने अनारकली और तुमसा नहीं देखा जैसी फिल्मों के साथ अपनी पहचान बनाई। हालांकि, 1958 में शशाधर मुखर्जी ने फिल्मिस्तान छोड़कर अपना स्टूडियो, फिल्मालय, स्थापित किया, जिसके बाद फिल्मिस्तान का प्रोडक्शन हाउस के रूप में प्रभाव कम होने लगा।

1964 में आई थी आखिरी फिल्म

1950 के दशक के अंत में, टोलाराम जालान, एक व्यवसायी और प्रकाश कॉटन मिल्स के मालिक ने फिल्मिस्तान स्टूडियो खरीद लिया। इस समय तक, स्टूडियो का प्रोडक्शन हाउस बंद हो चुका था और यह मुख्य रूप से शूटिंग के लिए किराए पर दिए जाने वाली जगह बनकर रह गया था।

1964 में बनी दूज का चांद इस स्टूडियो की आखिरी प्रोडक्शन फिल्म थी। इसके बाद फिल्मिस्तान ने अपने सात शूटिंग फ्लोर्स, जेल, पुलिस स्टेशन और अस्पताल जैसे सेट्स के साथ एक शूटिंग लोकेशन के रूप में काम करना जारी रखा।

शाह रुख खान की रा.वन और सलमान की बॉडीगार्ड हुईं शूट

पिछले कुछ दशकों में फिल्मिस्तान में कई आधुनिक फिल्में और टीवी शोज की शूटिंग हुई है। इनमें रा.वन (2011), बॉडीगार्ड (2011), और 2 स्टेट्स (2014) का गाना “ऑफो” शामिल हैं। इसके अलावा यश राज फिल्म्स के टीवी शो खोटे सिक्के और रिएलिटी शो झलक दिखला जा भी यहां फिल्माए गए।

फिल्म संगठन ने की डील कैंसिल करने की मांग

ऑल इंडिया सिने वर्कर्स एसोसिएशन ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर स्टूडियो की बिक्री निरस्त करने की मांग की है। उनका कहना है कि स्टूडियो बिकने से कई तकनीशियन और वर्कर्स बेरोजगार हो जाएंगे। यह सिर्फ एक ढांचा नहीं है, बल्कि भारतीय सिनेमा की विरासत है।

एसोसिएशन ने मांग की है कि स्टूडियो को रीडेवलपमेंट में जाने से रोककर इसे सरकारी सरपरस्ती में लेकर पब्लिक के लिए सांस्कृतिक विरासत के तौर पर रखा जाए।