Costao Review: रोमांच में चूकी कस्टम विभाग के असली ‘सिंघम’ की कहानी, नवाजुद्दीन ने ईमानदारी से निभाई जिम्मेदारी

Nawazuddin Siddiqui movie Costao streaming on Zee5. Photo- Instagram

फिल्म: कॉस्ताव (Costao)
कलाकार: नवाजुद्दीन सिद्दीकी, प्रिया बापट, किशोर कुमार जी, हुसैन दलाल, गगनदेव रियार आदि।
निर्देशक: सेजल शाह
लेखक: भावेश मंडालिया, मेघना श्रीवास्तव
निर्माता: विनोद भानुशाली
प्लेटफॉर्म: Zee5
अवधि: 2 घंटा 4 मिनट
वर्डिक्ट: *** (तीन स्टार)

मनोज वशिष्ठ, मुंबई। Costao Review: यह संयोग ही है कि नवाजुद्दीन सिद्दीकी की फिल्म कॉस्ताव (क्रेडिट रोल के मुताबिक) ठीक उसी दिन ओटीटी के पर्दे पर उतरी है, जब सिनेमाघरों में बॉलीवुड के सिंघम अजय देवगन की फिल्म ‘रेड 2’ ने छापा मारा है।

दोनों फिल्में वैसे तो दो अलग-अलग सरकारी महकमों इनकम टैक्स और कस्टम के ईमानदार और तेजतर्रार अफसरों की कहानी दिखाती हैं, मगर एक बात दोनों में कॉमन है कि अपराधियों से लड़ने के साथ इन अफसरों को उस सिस्टम से भी लड़ना पड़ता है, जिसका वो हिस्सा हैं।

रेड 2 जहां इनकम टैक्स विभाग के कमिश्नर अमेय पटनायक की काल्पनिक कहानी है, वहीं कॉस्ताव नब्बे के दौर में घटी एक सच्ची कहानी है, जिसके केंद्र में कस्टम विभाग का ईमानदार अफसर कॉस्ताव फर्नांडिस है।

यह फिल्म कॉस्ताव के संघर्षों की तस्वीर पेश करने के साथ सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को रेखांकित करती है, जिसने एक अधिकारी और उसके इनफॉर्मर के बीच भरोसे को ना सिर्फ गाढ़ा किया, बल्कि ईमानदार अफसरों के हाथ मजबूत किये।

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क्या है कॉस्ताव की कहानी?

कहानी का समयांतराल नब्बे का दौर और कथाभूमि गोवा है। कस्टम विभाग के अफसर कॉस्ताव फर्नांडिस को अपने मुखबिर से सूचना मिलती है कि पॉलिटिशियन और कुख्यात स्मगलर डिमैलो का 1500 किग्रा सोना गोवा के समुद्र तट पर उतरने वाला है।

इतना सोना अगर देश के बाजारों में अवैध रूप से पहुंच जाए तो सोना के दाम धड़ाम हो सकते थे। फर्नांडिस अपने वरिष्ठ अधिकारियों को विश्वास में लेकर सोने के पीछे लग जाता है।

कुछ रातों की नींद उड़ने के बाद एक दिन जब डिमैलो का भाई पीटर डिमैलो सोना लेकर अपना कार से भाग रहा होता है तो कॉस्ताव उसका पीछा करता है।

पीटर, कॉस्ताव को मारने की कोशिश करता है, मगर कॉस्ताव अपने बचाव में पीटर का मार देता है। पुलिस जब तक मौका-ए-वारदात पर पहुंचती है, सोना कार से गायब हो चुका है।

अब कॉस्ताव के पास अपनी बेगुनाही का कोई सबूत नहीं होता, क्योंकि इस केस में कॉस्ताव अकेला ही जुटा होता है। सूचना लीक होने से बचाने के लिए उसकी एंट्री डीआरआई में भी नहीं की जाती।

नतीजतन, कॉस्ताव पर कत्ल का मुकदमा चलाया जाता है। चुनाव जीत चुका डिमैलो पहले से ज्यादा ताकतवर हो जाता है और कॉस्ताव को फांसी पर लटकवाने के लिए दिल्ली तक का जोर लगा देता है।

ड्रामा की कमी ने कम किया फिल्म का रोमांच

कॉस्ताव (Costao Review) की कहानी उनकी बेटी के नजरिए से दिखाई गई है। हर बेटी के लिए उसका पिता पहला हीरो होता है। क्रेडिट रोल के साथ आने वाले दृश्यों में बेटी बताती है कि उसका पिता, जिसे वो कॉस्ताव ही कहती है, अपने काम में कितना माहिर है। स्पोर्ट्स पर्सन है। मुखबिरों की कद्र करता है। उनकी मदद करता है। काम के प्रति ना सिर्फ समर्पित है, बल्कि माहिर भी है।

उसकी नजरों से कुछ छिपा नहीं रह सकता है। यह दृश्य एक बेटी और पिता के बीच मीठे रिश्ते को जाहिर करने के साथ कॉस्ताव के पारिवार के लिए समर्पण को भी दिखाते हैं।

कॉस्ताव जैसे-जैसे आगे बढ़ती है, कॉस्ताव फर्नांडिस की निजी और कामकाजी जिंदगी के पन्ने खुलते हैं। हालांकि, जिस तरह की कहानी है, उसमें बहुत अधिक रोमांच नहीं है। पटकथा को सपाट रखा गया है। जिन दृश्यों में रोमांच का स्कोप था, वहां भी लेखक चूक गये है। कथ्य को नाटकीयता में बहने से रोकने के लिए शायद ऐसा किया गया है। इस वजह से फिल्म के कुछ हिस्से ऊबाऊ लगते हैं।

खासकर, कॉस्ताव के बीच पर निगरानी के दृश्यों को रोमांचक बनाया जा सकता है। कॉस्ताव स्पोर्ट्स कोटे से पुलिस अफसर बनते हैं। इस खूबी का उपयोग पटकथा में किया गया है। कराटे में ब्लैक बेल्ट कॉस्ताव जख्मी होने के बाद भी पांच लोगों पर भारी पड़ते हैं, जो उन्हें मेडिकल परीक्षण के दौरान अस्पताल में मारने आये थे।

अपने फर्ज को समर्पित कास्ताव जैसे अफसरों को निजी जिंदगी में किस मानसिक दवाब से गुजरना पड़ता है, इसे एंगल को उभारा गया है। पत्नी मारिया फर्नांडिस सब कुछ समझते हुए भी इस इंतजार में रहती है कि कब उसके परिवार का जीवन पटरी पर लौटेगा।

फिल्म जहां यह दिखाती है कि एक सरकारी महकमा अपने साथी का साथ देने के लिए हर सम्भव कोशिश करता है, वहीं दूसरा सरकारी महकमा दिल्ली के राजनीतिक दवाब में उसकी गर्दन दबोचने का कोई मौका नहीं छोड़ता।

कॉस्ताव (Costao Review) का सबसे बड़ा संदेश एक सरकारी अधिकारी और मुखबिर के बीच का अटूट भरोसा है, जिसे कॉस्ताव अपनी जान की कीमत पर भी टूटने नहीं देता।

निचली अदालतों और हाई कोर्ट में दोषी ठहराए जाने के बाद कॉस्ताव सुप्रीम कोर्ट की शरण लेता है। जो दिल्ली सीबीआई का दुरुपयोग करके कॉस्ताव की जिंदगी को खत्म करने पर तुली है, वहां स्थित सुप्रीम कोर्ट उसे ना सिर्फ बाइज्जत बरी करती है, बल्कि कस्टम एक्ट की धारा 106 और 155 के तहत सरकारी कर्मी का इकबाल बुलंद करती है।

कॉस्ताव को बाद में इस केस के लिए प्रेसीडेंट मेडल से सम्मानित किया जाता है। अंत में असली कॉस्ताव की तस्वीरों के जरिए रियल लाइफ के हीरो से मिलवाया गया है।

कहानी के खान की याद दिलाते नवाज

कई बायोपिक फिल्मों में काम कर चुके नवाजुद्दीन सिद्दीकी यहां भी नहीं चूके हैं और अपने तेवरों से कहानी के आईबी ऑफिसर खान की याद दिलाते हैं। नवाज ने अपने अभिनय को किरदार की सीमाओं के अंदर ही रखा है। मौके होते हुए भी उन्होंने इसे भटकने नहीं दिया। हां, गोवा की हिंदी के लहजे में नवाज मात खा जाते हैं।

डिमैलो से सामना होने पर कॉस्ताव जिस तरह उस पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाता है, वो दृश्य जानदार है। एक कस्टम अधिकारी के मानवीय पक्ष को भी उन्होंने कामयाबी के साथ उकेरा है। पत्नी मारिया के किरदार में प्रिया बापट ने बराबर का साथ दिया है।

ईमानदार परिवार के अफसरों के परिवारों को भी कुर्बानियों देनी पड़ती हैं। मगर, एक हद ऐसी भी आती है, जब सब्र जवाब देने लगता है। प्रिया ने ऐसे दृश्यों को सफलता के साथ पेश किया है। डिमैलो के किरदार में दक्षिण भारतीय अभिनता किशोर कुमार जी (शी फेम) ने खलनायक के किरदार को ओवर-द-टॉप नहीं जाने दिया है। अन्य सहयोगी कलाकारों ने भी अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है।

कॉस्ताव (Costao Review) एक उम्मीद जगाने वाली फिल्म है, जो देश की न्याय व्यवस्था में विश्वास जगाने के साथ ईमानदार अफसरों के नाम संदेश छोड़ती है।