फिल्म: इंस्पेक्टर झेंडे
कलाकार: मनोज बाजपेयी, जिम सर्भ, सचिन खेड़ेकर, गिरिजा ओक आदि।
निर्देशक: चिन्मय मांडलेकर
लेखक: चिन्मय मांडलेकर
निर्माता: ओम राउत
अवधि: 112 मिनट
रेटिंग: ** 1/2 (ढाई स्टार)
मनोज वशिष्ठ, मुंबई। नटवरलाल, चार्ल्स शोभराज, रंगा-बिल्ला अपराध की दुनिया के ऐसे किरदार हैं, जिनके किस्से-कहानियां वक्त के साथ दंतकथाओं की तरह सामाजित चेतना में पैबस्त हो गये। इनके इर्द-गिर्द कुछ सच्ची तो कई काल्पनिक कहानियां रची और गढ़ी गईं।
सिनेमा के अलग-अलग दौर में फिल्मकारों ने इन किरदारों को अपनी-अपनी कल्पना शक्ति के हिसाब से पर्दे पर पेश किया। कभी सिनेमा का नायक तो कभी खलनायक इन कहानियों से प्रेरित दिखा।
अब ऐसी ही एक कहानी आई है, जो बिकिनी किलर के नाम से कुख्यात रहे चार्ल्स शोभराज के मुंबई पुलिस द्वारा पकड़े जाने की घटना पर आधारित है। हालांकि, इस कहानी का नायक चार्ल्स नहीं, इंस्पेक्टर झेंडे हैं, जिनके नाम पर फिल्म का शीर्षक भी रखा गया है।
फिल्म नेटफ्लिक्स पर आ चुकी है। मनोज बाजपेयी ने इंस्पेक्टर झेंडे की भूमिका निभाई है, जबकि चार्ल्स शोभराज, फिल्म में जिसे कार्ल्स भोजराज और स्विमसूट किलर कहा गया है, की भूमिका में जिम सर्भ हैं। इंस्पेक्टर झेंडे वो शख्स हैं, जिन्होंने दुनिया की पांच जेलों से फरार हो चुके इस शातिर अपराधी को एक नहीं, दो बार पकड़ा था।
इंस्पेक्टर झेंडे का निर्माण ओम राउत ने किया है, जबकि इसके निर्देशक चिन्मय मांडलेकर हैं। फिल्म में मराठी और हिंदी सिनेमा के कई जाने-पहचाने चेहरे प्रमुख किरदारों में हैं।
ब्लैक वारंट से आगे की कहानी
इस फिल्म की कहानी वहीं से शुरू होती है, जहां नेटफ्लिक्स की सीरीज ब्लैक वारंट खत्म हुई थी। जेलर सुनील गुप्ता के नजरिए से दिखाई गई सीरीज के क्लाइमैक्स में दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद चार्ल्स (कार्ल्स) जेल अधिकारियों और कैदियों को अपनी बर्थडे पार्टी मनाने के बहाने नशीला पदार्थ खिलाकर फरार हो जाता है।
चार्ल्स का इस तरह तिहाड़ से भागना पुलिस ही नहीं, पूरी व्यवस्था के लिए शर्म की बात थी।
इंस्पेक्टर झेंडे इसी जेल ब्रेक से शुरू होकर मुंबई पहुंचती है, जहां फैमिली मैन इंस्पेक्टर झेंडे दूध की लाइन में खड़े हुए रेडियो पर उसकी फरारी की खबर सुनता है और बिना देर किये अपने पुलिस स्टेशन पहुंचकर उस कॉल का इंतजार करता है, जिसमें कार्ल्स को पकड़ने की जिम्मेदारी उसे दी जाएगी।
इस विश्वास की वजह है कि 1971 में कार्ल्स जब अपेक्षाकृत छोटा अपराधी था, तब उसे मुंबई में इंस्पेक्टर झेंडे ने ही गिरफ्तार किया था।
कॉमेडी के बजाय अंटर करेंट ह्यूमर की थी दरकार
कहने को तो इंस्पेक्टर झेंडे विशुद्ध क्राइम ड्रामा है, जिसमें जबरदस्त रोमांच की पूरी गुंजाइश है, मगर निर्देशक मांडलेकर ने इसे क्राइम कॉमेडी जॉनर में ढाला है।
इंस्पेक्टर झेंडे, उनकी पूरी टीम, फिल्म में कार्ल्स को पकड़ने के लिए उनकी कोशिशें, सब हास्य पैदा करती हैं। अगर, फिल्म में कुछ सीरियस है तो वो इंस्पेक्टर झेंडे की कार्ल्स को पकड़ने की जिद।
हालांकि, सच्ची घटना पर बनी इस अपराध कथा का हास्य बहुत असरदार नहीं रहा है। कई जगहों पर सिचुएशनल है। मगर, कुछ पड़ाव ऐसे भी हैं, जहां हास्य मनोरंजन करने के बजाय इरीटेट करता है। बेहतर होता कि सारा ह्यूमर अंडर करेंट रखा जाता।
खासकर क्लाइमैक्स में, गोवा पुलिस और मुंबई पुलिस के बीच सीमा विवाद के चलते कार्ल्स की कस्टडी को लेकर पुलिस कर्मियों के बीच खींचतान पूरी फिल्म के मकसद को कमजोर करती है।
मुंबई पुलिस ने साधनों और संसाधनों की कमी के बावजूद जिस तरह इंडिया छोड़कर विदेश भागने की तैयारी कर रहे कार्ल्स को गोवा में जाकर ढूंढा और दबोचा, वो सीक्वेंस रोमांचक है।
फैमिली मैन के अंदाज में दिखे मनोज बाजपेयी
अभिनय की बात करें तो मनोज बाजपेयी ने झेंडे के किरदार के साथ न्याय किया है, मगर उनके अभिनय में अब दोहराव महसूस होने लगा है।
खासकर, द फैमिलीमैन सीरीज के बाद जब वो ऐसे किरदार निभाते हैं तो नया कुछ नहीं लगता। जिम सर्भ ने कार्ल्स के किरदार के चार्म को तो पर्दे पर सफलता के साथ पेश कर दिया, मगर वो खौफ नहीं पैदा कर सके, जिसके लिए वो इंटरपोल की लिस्ट में शामिल था।
इंस्पेक्टर झेंडे, एक पीरियड फिल्म है, जिसका कालखंड अस्सी का दशक है। इस दौर के मुंबई और गोवा को दिखाने के लिए प्रोडक्शन ने मेहनत की है और प्रॉप्स का इस्तेमाल किया है, मगर वो प्रभावित नहीं कर पाता।
फिल्म के क्लाइमैक्स की ओर बढ़ते हुए वो दृश्य मन को अच्छा लगता है, जब असली इंस्पेक्टर मधुकर बी झेंडे अपने ऑन स्क्रीन किरदार (मनोज बाजपेयी) से मिलकर हाथ मिलाते हैं और दोनों जोर से हंसने लगते हैं। सम्भवत: झेंडे के अपने हंसमुख स्वभाव के कारण ही फिल्म का जॉनर कॉमेडी रखा गया है।
कुल मिलाकर इंस्पेक्टर झेंडे ऐसी फिल्म है, जो जिसमें तमाम कमियों के बावजूद आप पूरी देखना चाहते हैं। शायद यह उन दंतकथाओं का ही असर है, जो चार्ल्स जैसे अपराधियों के बारे में जेन जी से पहले वाली जनरेशन बचपन से सुनती आई है।

