Sitaare Zameen Par Review: ‘तारे’ जैसी नहीं ‘सितारे’… ‘लाल सिंह चड्ढा’ और ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ के बीच डोलती आमिर खान की फिल्म

Sitaare Zameen Par review. Photo- Instagram
फिल्म: सितारे जमीन पर 

कलाकार: आमिर खान, जिनिलिया डिसूजा, डॉली अहलूवालिया, बृजेंद्र काला, गुरपाल सिंह, आरूष दत्ता, गोपी कृष्ण वर्मा, संवित देसाई, वेदांत शर्मा, आयुष भंसाली, आशीष पेंडसे, ऋषि शहानी, ऋषभ जैन, नमन मिश्रा, सिमरन मंगेशकर आदि।

निर्देशक: आरएस प्रसन्ना

निर्माता: आमिर खान प्रोडक्शंस

अवधि: 2 घंटा 38 मिनट

वर्डिक्ट: *** (तीन स्टार)

मनोज वशिष्ठ, मुंबई। Sitaare Zameen Par Review: इसमें कोई संदेह नहीं कि आमिर खान जब फिल्म लेकर आते हैं तो एक सेंसिबल और सेंसिटिव सिनेमा की उम्मीद रहती है। ऐसा सिनेमा, जो ना सिर्फ फिल्म निर्माण की कसौटियों पर खरा उतरे, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी का निर्वहन भी करे और यह सब करते समय मनोरंजन से समझौता बिल्कुल ना करे।

लाल सिंह चड्ढा से आमिर ने अपने बारे में बनी इस धारणा की धज्जियां खुद ही उड़ा दी थीं। फॉरेस्ट गम्प जैसी क्लासिक फिल्म की रीमेक होने की वजह से इस फिल्म की आलोचना करने वालों ने अपने पैरामीटर भी हाइ कर दिये थे, लिहाजा फिल्म में आमिर के अभिनय से लेकर कथा पटकथा हर विभाग की बखिया उधेड़ी गई।

इस फिल्म की ऐतिहासिक विफलता के बाद सितारे जमीन पर के साथ जब आमिर खान की वापसी की खबरें आईं तो उम्मीद बनी थी कि रीमेक से सबक लेते हुए इस बार मिस्टर परफेक्शनिस्ट पिछले सारे दाग धो देंगे और एक ऐसी ओरिजिनल फिल्म देंगे, जो अद्भुत होगी।

ऐसा नहीं हुआ। आमिर एक और रीमेक लेकर आ गये। 2018 की स्पेनिश फिल्म कैमपियॉन्स (Campeones) की रीमेक सितारे जमीं पर लाल सिंह चड्ढा से बस चार कदम आगे और इसी ब्रेकेट की सीक्रेट सुपरस्टार से दो कदम पीछे की फिल्म है। 2023 में इस फिल्म को हॉलीवुड में चैम्पियंस नाम से रीमेक किया जा चुका है।

भले ही सितारे जमीन पर उसकी स्प्रिचुअल सक्सेसर कहकर प्रचारित की गई है, मगर उस फिल्म की क्लास अलग है। बहरहाल, सितारे जमीन पर को देखते हुए मिलीजुली फीलिंग आती है।

स्पोर्ट्स कॉमेडी-ड्रामा सितारे जमीन पर का निर्देशन आरएस प्रसन्ना ने किया है और आमिर खान प्रोडक्शंस ने निर्माण किया है।

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क्या है Sitaare Zameen Par की कहानी?


दिल्ली के लाजपत नगर में अपनी मां के साथ रहने वाला गुलशन अरोड़ा (आमिर खान) एक अकड़ू, घमंडी और गुस्से वाला बास्केटबॉल कोच है। गलती से शराब पीकर गाड़ी चलाने और अपने सीनियर को मारने की वजह से उसे जज सजा के तौर पर एक खास कम्युनिटी सर्विस का काम देती हैं- न्यूरोडायवर्जेंट (ऑटिज्म और डाउन सिंड्रोम) युवाओं की एक बास्केटबॉल टीम को कोच करना।

न्यूरोडायवर्जेंट होने के कारण 30 की उम्र में भी यह युवक 7-8 साल के बच्चों की तरह सोचते और बिहेव करते हैं।

पहले तो गुलशन को ये सब एक सजा लगता है, लेकिन धीरे-धीरे ये ‘खास सितारे’ उसे जिंदगी का असली मतलब सिखाते हैं। फिल्म का दिल है इसका मैसेज- हर इंसान खास है और उसे मौका मिलना चाहिए। जैसा कि फिल्म की टैगलाइन भी है- सबका अपना नॉर्मल है। इस संदेश तक पहुंचने के दौरान कहानी भावनात्मक पड़ावों से गुजरती है, जो कहीं हंसाती तो कहीं रुलाती है। एक-दो जगह बोर भी करती है।

क्या है फिल्म का मजबूत पक्ष?


सबसे पहले तो बात करते हैं फिल्म के मजबूत पक्ष की। सितारे जमीन पर का सबसे बड़ा प्लस है इसका इमोशंस और कॉमेडी का संतुलन। आमिर खान ने एक बार फिर दिखा दिया कि वो किसी भी किरदार में जान डाल सकते हैं।

गुलशन के रोल में वो पहले तो एकदम स्वार्थी और नेगेटिव वाइब्स वाले कोच लगते हैं, लेकिन जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, उनका बदलाव आपको स्क्रीन से बांधे रखता है। खासकर वो सीन, जहां वो अपनी टीम के साथ दिल से जुड़ते हैं, वो सचमुच इमोशंस ऊपर ले जाता है। आमिर की एक्टिंग में वो सहजता है, जो आपको गुलशन की जर्नी में शामिल कर लेती है।

गुलशन की पत्नी सुनीता के रोल में जिनिलिया देशमुख ने भी संतुलित काम किया है। उनकी और आमिर की जोड़ी ताजा और मजेदार लगती है। स्पेशल युवाओं की टीम को कोच करते-करते गुलशन अपनी शादीशुदा जिंदगी के मसले भी सुलझाता है।

उनके बीच के कुछ फनी और इमोशनल डायलॉग्स आपको हंसाते भी हैं और दिल भी छूते हैं, लेकिन असली सितारे हैं वो नए एक्टर्स (आरुष दत्ता, गोपी कृष्णन वर्मा, वेदांत शर्मा, नमन मिश्रा, ऋषि साहनी, ऋषभ जैन व अन्य), जिन्होंने न्यूरोडायवर्जेंट किरदार निभाए हैं।

कोच गुलशन की आत्मसुधार की यात्रा का सर्किल तब पूरा होता है, जब एक डाउन सिंड्रोम वाला किरदार उनसे कहता है कि हमारे जैसा बच्चा किसी का ना हो, मगर आपके जैसा पिता हर बच्चे को मिलना चाहिए। यह लाइन जितना भावुक करती है, उतना ही गहरा संदेश देती है।

इनकी मासूमियत और एनर्जी फिल्म को एकदम अलग लेवल पर ले जाती है और उनकी दुनिया का एहसास करवाती है। खास तौर पर सिमरन मंगेशकर का किरदार गोलू, जो टीम की इकलौती फीमेल प्लेयर है, अपने चुलबुलेपन से सबका दिल जीत लेती है।

क्लाइमैक्स का ट्विस्ट चौंकाता है, क्योंकि आम तौर पर स्पोर्ट्स फिल्में विजेता टीम की जीत पर खत्म होती है, मगर सितारे जमीन पर इस क्लीशे के विपरीत हार पर खत्म होती है, इसी हार में फिल्म का बेहद जरूरी संदेश छोड़ती है।

कैसा है फिल्म का निर्देशन और संगीत?

डायरेक्टर आरएस प्रसन्ना ने कहानी को देसी टच दिया है, जो इसे बहुत रिलेटेबल बनाता है। आमिर के साथ डाउन सिंड्रोम और ऑटिसज्म वाले नये कलाकारों के दृश्य देखकर निर्देशन के पीछे प्रसन्ना की मेहनत और लगन नजर आती है।

बास्केटबॉल मैचों के सीन इतने शानदार ढंग से शूट किए गए हैं कि चेहरे पर बरबस मुस्कान आ जाती है। शंकर-एहसान-लॉय का म्यूजक और अमिताभ भट्टाचार्य के गाने “गुड फॉर नथिंग” और “सर आंखों पे मेरे”, फिल्म के मूड के समानांतर चलते हैं।

राम संपत का बैकग्राउंड स्कोर भी कहानी के उतार-चढ़ाव को बढ़िया ढंग से उभारता है।

आमिर खान इस बात के लिए बधाई के हकदार हैं कि उन्होंने ऐसे क्षेत्र में कदम रखने की कोशिश की है, जिसकी ओर आसानी से कोई नहीं जाना चाहता है। फिल्म का मैसेज, हर इंसान को बराबर मौके और सम्मान मिलना चाहिए, आज के दौर में बहुत जरूरी है।

ये आपको सोचने पर मजबूर करती है कि नॉर्मल होना आखिर होता क्या है? आपको जो असामान्य लगता है, वो दूसरे का सामान्य हो सकता है। इतना स्पेस तो हमें एक-दूसरे को देना पड़ेगा।

कहां रह गई कमी?

अब बात उन चीजों की, जो थोड़ा और बेहतर हो सकती थीं। चूंकि ये फिल्म स्पेनिश फिल्म का रीमेक है तो कहानी कई बार प्रेडिक्टेबल लगती है। अगर आपने ओरिजिनल फिल्म या इसका हॉलीवुड वर्जन देखा है तो आपको कुछ नया नहीं मिलेगा। स्क्रिप्ट में कुछ जगह ऐसा लगता है, जैसे मैसेज को बार-बार दोहराया गया, जो थोड़ा बोरिंग हो जाता है।

न्यूरोडायवर्जेंट किरदारों की अपनी कहानियों को और गहराई से दिखाया जा सकता था। अभी ऐसा लगता है कि वो बस गुलशन की कहानी को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किये जा रहे हैं। मिसाल के तौर पर, एक किरदार (लोटस) की गर्लफ्रेंड का जिक्र आता है, लेकिन उसकी कहानी को एक्सप्लोर नहीं किया गया, जो थोड़ा अधूरा सा लगता है।

कॉमेडी के कुछ सीन, खासकर शुरूआत में, जरा ओवर-द-टॉप लगते हैं। गुलशन की हरकतें और खिलाड़ियों के रिएक्शंस कई बार जबरदस्ती के लगते हैं, जो फिल्म की सीरियस टोन को थोड़ा कमजोर करते हैं। साथ ही, 2 घंटे 38 मिनट की लंबाई को थोड़ा और कसा जा सकता था, क्योंकि कुछ सीन बेवजह खिंचे हुए लगते हैं।

कैसा है फिल्म का तकनीकी पक्ष?

फिल्म की सिनेमैटोग्राफी और प्रोडक्शन डिजाइन इसे भव्यता देते हैं। दिल्ली, मुंबई और नोएडा की लोकेशंस इसे बहुत देसी और रिलेटेबल बनाती हैं।

बास्केटबॉल कोर्ट के सींस में इतनी ऊर्जा है कि आप खुद को खिलाड़ियों के साथ चीयर करते पाएंगे। बस, एडिटिंग को कुछ जगह और चुस्त करने की जरूरत थी, ताकि कहानी का फ्लो और स्मूथ हो।

देखें या ना देखें?


सितारे जमीन पर एक ऐसी फिल्म है, जो आपको हंसाएगी, रुलाएगी और थिएटर से निकलते वक्त एक सोच लेकर आएंगे। आमिर के अभिनय में भले ही नयापन ना हो। उनके एक्सप्रेशंस भले ही देखे हुए लगें, मगर उसमें एक रवानगी है। नए एक्टर्स की स्पॉन्टेनिटी और इसका पावरफुल मैसेज इसे खास बनाता है।

कुछ प्रेडिक्टेबल टर्न्स और अधूरी कहानियां इसे परफेक्ट होने से रोकती हैं, लेकिन फिर भी ये फैमिली के साथ देखने के लिए एक अच्छी च्वाइस है।