फिल्म: वॉर 2 (War 2)
कलाकार: ऋतिक रोशन, एनटीआर जूनियर, कियारा आडवाणी, अनिल कपूर आदि।
निर्देशक: अयान मुखर्जी
लेखक: आदित्य चोपड़ा, श्रीधर राघवन, अब्बास टायरवाला
निर्माता: आदित्य चोपड़ा
अवधि: 2 घंटा 50 मिनट
रेटिंग: ** (दो स्टार)
मनोज वशिष्ठ, मुंबई। ब्रह्मास्त्र के बाद जब अचानक खबर आई थी कि अयान मुखर्जी यशराज फिल्म्स की स्पाइ एक्शनर फिल्म वॉर 2 का निर्देशन करने जा रहे हैं, तभी मेरे दिल में एक बेचैनी सी हुई थी।
वॉर और पठान जैसी सफल स्पाइ एक्शन फिल्में डिलीवर करने के बाद निर्देशक सिद्धार्थ आनंद से यह जिम्मेदारी छीनकर अचानक अयान को देना मेरे गले नहीं उतरा था। फिल्म देखने से पहले कैसे किसी फैसले को गलत माना जाए?
लिहाजा, वॉर 2 की रिलीज तक सब्र और इंतजार किया। अब, जबकि फिल्म सिनेमाघरों में पहुंच गई तो यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि अयान को लेकर मेरे दिल में जो डर था, वो सही साबित हुआ।
वॉर 2, एक भव्य और विशाल इमारत है। बाहर से रंग-रोगन बढ़िया। खूब सजाया गया है, मगर जब अंदर जाते हैं तो समझ में नहीं आता कि ड्राइंग रूम किधर है और बेडरूम किधर।
फिल्म देखकर ऐसा लगता है, जैसे निर्माताओं ने अयान से कहा हो- लो भाई, यह फिल्म का बजट है। ये कलाकार हैं। यह स्क्रिप्ट है। अब वीएफएक्स के साथ एक्शन सीन शूट करो और गैप्स में कहानी डाल दो। बन गई वॉर 2।
यशराज के स्पाइ यूनिवर्स की सभी फिल्में एक ही पैटर्न को फॉलो करती हैं, जिससे यह यूनिवर्स अब अपनी ही फिल्मों के बोझ तले दब गया है। वॉर 2 इस यूनिवर्स के लिए रेड फ्लैग कही जा सकती है। अगर यशराज फिल्म्स को अपना स्पाइ यूनिवर्स बचाना है तो मौजूदा पैटर्न को तोड़कर कुछ नया निकालना होगा।
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क्या है War 2 की कहानी?
रॉ का बागी एजेंट कबीर धालीवाल मर्सिनरी बन चुका है। पैसों के लिए हाइ प्रोफाइल लोगों का कत्ल करता है। काली नाम का एक अंतरराष्ट्रीय कारटेल है, जिसमें अमीर बिजनेसमैन और राजनेता शामिल हैं। यह कारटेल भारत में डेमोक्रेसी खत्म करना चाहता है।
कबीर इनके लिए काम करता है। यह कारटेल पुराने देशभक्तों को भी खत्म करना चाहता है। इनमें कर्नल लूथरा भी शामिल हैं। बागी एजेंट कबीर के पीछे रॉ पड़ी है।
कैसे हैं स्टोरी, स्क्रीनप्ले और डायलॉग?
यह कहानी यशराज फिल्म्स के सर्वेसर्वा आदित्य चोपड़ा ने लिखी, जिस पर श्रीधर राघवन ने स्क्रीन प्ले और अब्बास टायरवाला ने संवाद लिखे हैं। यह कहानी कॉन्सेप्ट के स्तर पर सुनने में अच्छी लगती है, मगर जब इसे स्क्रीनप्ले का रूप दिया गया तो वही पुरानी जासूसी फिल्मों के दृश्यों का दोहराव लगती है।
कहानी में कई ट्विस्ट्स हैं, लेकिन वे प्रेडिक्टेबल लगते हैं और लॉजिक की कमी महसूस होती है। डायलॉग्स औसत हैं। कुछ एक्शन सीक्वेंस पावरफुल लगते हैं, लेकिन ज्यादातर हिस्सों में वे कमजोर और ओवर-द-टॉप हैं।
फिल्म की लंबाई (करीब 2 घंटे 50 मिनट) के कारण स्क्रीनप्ले सुस्त पड़ जाता है और कई सीन अनावश्यक लगते हैं। कुल मिलाकर, स्क्रिप्ट फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है, जो बड़े सितारों की मौजूदगी के बावजूद कमजोर कड़ी है।

कैसा है कलाकारों का अभिनय?
परफॉर्मेंस के मामले में फिल्म मजबूत है। ऋतिक रोशन कबीर के रोल में शानदार हैं। उनकी फिजीक, डांस और एक्शन स्किल्स फिल्म का हाइलाइट हैं।
जूनियर एनटीआर ने विक्रम के रूप में अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने की पूरी कोशिश की है। हालांकि, उनकी एंट्री को लेकर जो हाइप बनाई गई थी। उसके अनुपात में एनटीआर जूनियर फीके पड़े हैं। उनका बॉलीवुड डेब्यू यादगार नहीं हो सका।
कियारा आडवाणी का किरदार ज्यादा लम्बार नहीं है। ऋतिक के साथ उनकी कैमिस्ट्री अधपकी लगती है। आवन जावन गाना भी असर छोड़ने में कामयाब नहीं होता। इस गाने को यशराज घुंघरू और पठान के बेशरम रंग जैसा बनाने की कोशिश की, मगर वैसा बना नहीं।
सितारों की परफॉर्मेंस फिल्म को बचाती है, लेकिन स्क्रिप्ट की वजह से वे पूरी क्षमता नहीं दिखा पाते।
कैसा है निर्देशन?
स्क्रीनप्ले के बाद इस फिल्म की दूसरी सबसे कमोजर कड़ी अयान मुखर्जी हैं, जो फिल्म में फ्रेशनेस नहीं ला पाये। मुखर्जी ने सारा ध्यान ऋतिक और एनटीआर जूनियर पर टक्कर पर लगा दिया, मगर इस स्टोरी में बहुत कुछ ऐसा था, जिसे एक्सप्लोर किया जा सकता था।
हवा में एक्शन, पानी में एक्शन, आग में एक्शन… मतलब जहां मौका मिला, एक्शन ठूंस दिया गया है। स्पाइ थ्रिलर सिर्फ एक्शन नहीं होती हैं।
उनमें माइंडगेम्स होते हैं। फिल्म पार्ट्स में अच्छी लगती है, मगर सारे तत्वों को मिलाकर एक मुकम्मल प्रोडक्ट बनने में असफल रहती है। अयान ने यशराज से मिले बजट का उपयोग करके स्केल तो बढ़ा दिया, मगर इस चक्कर में स्टोरी और स्क्रीनप्ले के पेंच कसना भूल गये।