Happy Father’s Day: कभी नरम तो कभी गरम… वक्त के साथ यूं बदले हिंदी सिनेमा में ‘पापा’

Father's characters changed over the time in Bollywood. Photo- Instagram

मुंबई। Happy Father’s Day: सिनेमा कहीं का भी हो, उसमें संस्कृति और समाज की झलक हमेशा रही है। सामाजिक मूल्यों, पारिवारिक रिश्तों और भावनात्मक गहराइयों को अक्सर कहानियों में पिरोया जाता रहा है। इनमें बाप-बेटे का रिश्ता एक ऐसा विषय रहा है, जो अक्सर पर्दे पर जज्बात का सैलाब लेकर आया है।

हिंदी सिनेमा की कालजयी फिल्म मुगले-आजम से लेकर एनिमल तक, हिंदी सिनेमा ने पिता के विभिन्न रूप पर्दे पर देखे। पापा कभी हीरो लगे तो कभी विलेन। कभी दोस्त बने तो कभी सही राह दिखाने वाले गाइड। कई कलाकारों ने भी इस किरदार में जान फूंकी है।

यह रिश्ता कभी आदर्शवाद और बलिदान का प्रतीक रहा तो कभी टकराव, समझौते और पुनर्मिलन की कहानी। फादर्स डे (Happy Father’s Day) के मौके पर इस लेख में हम बॉलीवुड में बाप-बेटे के रिश्ते पर आधारित फिल्मों, समय के साथ आए बदलावों और हिंदी सिनेमा के कुछ सबसे प्रभावशाली पिता किरदारों पर चर्चा करेंगे।

बाप-बेटे के रिश्ते का आरम्भिक चित्रण: आदर्शवाद और पारंपरिक मूल्य

1950 और 60 के दशक में बॉलीवुड में पिता-पुत्र का रिश्ता मुख्य रूप से पारंपरिक और नैतिकता पर आधारित था। इस दौर की फिल्में समाज में पिता की भूमिका को एक मार्गदर्शक, संरक्षक और परिवार के लिए बलिदान देने वाले व्यक्ति के रूप में दर्शाती थीं। मिसाल के तौर पर-

  • आवारा (1951): राज कपूर की यह क्लासिक फिल्म एक जज (पृथ्वीराज कपूर) और उसके बेटे राज (राज कपूर) के बीच के रिश्ते को दर्शाती है। पिता का अपने बेटे पर संदेह और बेटे का अपने पिता का सम्मान खोने का डर इस फिल्म की भावनात्मक गहराई को दर्शाता है। यह फिल्म उस समय की सामाजिक मान्यताओं को दर्शाती है, जहां पिता का कठोर रवैया और बेटे की बगावत समाज के सामने एक नया सवाल खड़ा करती थी।

  • दो बीघा जमीन (1953): बिमल रॉय की इस फिल्म में शम्भू (बलराज साहनी) एक गरीब किसान है, जो अपने बेटे के लिए बेहतर भविष्य की खोज में सब कुछ दांव पर लगा देता है। यह फिल्म पिता के बलिदान और पुत्र के प्रति उनके अटूट प्रेम को दर्शाती है।

  • मुगले-आजम (1960): कहानी मुगल बादशाह अकबर और उसके बेटे सलीम के बीच प्रेम को लेकर टकराव पर आधारित थी। इस काल्पनिक कहानी का एक सिरा भले ही इतिहास के पन्नों से जुड़ा हो, मगर दूसरा सिरा भारतीय समाज में पिता और बेटे के बीच हमेशा रहने वाली दूरी को दर्शाता है।

इस दौर में पिता को परिवार का आधार और नैतिकता का प्रतीक माना जाता था। फिल्में अक्सर गरीबी, सामाजिक असमानता और पारिवारिक जिम्मेदारियों जैसे मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती थीं, जहां पिता का किरदार अपने बेटे को सही रास्ता दिखाने के लिए हर मुश्किल से लड़ता था।

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समय के साथ बदलाव: टकराव और समझौता

1970 और 80 के दशक में भारतीय समाज में बदलाव आए और इसके साथ ही बॉलीवुड में पिता-पुत्र के रिश्ते का प्रेजेंटेशन भी बदला। इस दौर में पारंपरिक मूल्यों और युवा पीढ़ी की आकांक्षाओं के बीच टकराव दिखाई देने लगा।

  • दीवार (1975): यह फिल्म पिता-पुत्र के रिश्ते से ज्यादा दो भाइयों की कहानी है, लेकिन पिता की अनुपस्थिति और मां (जो पिता की जगह लेती है) के साथ बेटों का रिश्ता इसकी आत्मा है। विजय (अमिताभ बच्चन) और रवि (शशि कपूर) के बीच का टकराव उस समय की सामाजिक उथल-पुथल को दर्शाता है, जहां एक बेटा अपराध की दुनिया में चला जाता है तो दूसरा कानून का रक्षक बनता है। पिता की अनुपस्थिति इस कहानी में एक बड़ा सवाल उठाती है।

  • त्रिशूल (1978): यश चोपड़ा की इस फिल्म में संजीव कुमार एक ऐसे पिता की भूमिका में हैं, जो अपने बेटे (अमिताभ बच्चन) को जन्म से पहले छोड़ देता देता है। यह फिल्म बदले की कहानी है, लेकिन अंत में पिता और पुत्र के बीच समझौते की ओर बढ़ती है। यह उस समय के बदलते पारिवारिक ढांचे को दर्शाता है, जहां रिश्तों में जटिलताएं बढ़ रही थीं।

  • शक्ति (1982): पिता (दिलीप कुमार) के उसूलों और बेटे (अमिताभ बच्चन) की अपने बाप से उम्मीदों के बीच टकराव की कहानी है शक्ति। यह फिल्म पिता की नैतिकता और बेटे की बगावत का चित्रण है।

इस दौर में पिता (Happy Father’s Day) अब केवल आदर्शवादी नहीं थे, बल्कि उनकी कमियां भी सामने आने लगीं। बेटों की स्वतंत्रता और इनडिविजुएलिटी की चाहत ने कहानियों में नया आयाम जोड़ा।

आधुनिक युग: संवेदनशीलता और दोस्ती

1990 के दशक के बाद बॉलीवुड में ग्लोबलाइजेशन का प्रभाव दिखा, जिसने पर्दे पर पिता-पुत्र (Happy Father’s Day) के रिश्ते को ज्यादा संवेदनशील और बहुआयामी बनाया। इस दौर में पिता और बेटे के बीच की दूरी घटी, दोस्ती, समझ और भावनात्मक गहराई बढ़ी। जिन फिल्मों के जरिए यह बदलाव सामने आया, उनमें शामिल हैं-

  • दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (1995): इस फिल्म में अनुपम खेर का किरदार एक ऐसे पिता का है, जो अपने बेटे के सपनों को समझता है और उसे सपोर्ट करता है। यह फिल्म उस समय की युवा पीढ़ी और उनके माता-पिता के बीच की समझ को दर्शाती है। दूसरे पिता अमरीश पुरी थे, जो बेटी की ख्वाहिश के लिए अपनी जिद छोड़ देता है।

  • अकेले हम अकेले तुम (1995): आमिर खान की यह फिल्म वैसे तो शादी में मुनमुटाव पर आधारित है, मगर पिता और बेटे की समीकरण इस फिल्म की धुरी है। पिता किस तरह खुद संघर्ष करते हुए बेटे को अच्छी परवरिश देने की कोशिश करता है, उस पर आधारित है। फिल्म में पिता और बेटे के बीच बॉन्डिंग को भी दिखाती है।

  • उड़ान (2010): यह फिल्म एक कठोर पिता (रोनित रॉय) और उनके बेटे (रजत बरमेचा) के बीच के रिश्ते की कहानी है। पिता की उम्मींदों के बोझ तले दबे बेटे की स्वतंत्रता की चाहत को यह फिल्म बहुत संवेदनशीलता से दर्शाती है।

  • पा (2010): यह फिल्म इसलिए भी यादगार है, क्योंकि अभिषेक बच्चन अपने असली पिता अमिताभ बच्चन के पिता बने थे। अमिताभ ने दुर्लभ बीमारी प्रोजेरिया से ग्रस्त बच्चे का किरदार निभाया था। इसकी वजह से उसकी मृत्यु कुछ ही सालों में होने वाली थी।

  • दंगल (2016): आमिर खान की यह फिल्म एक पिता (महावीर फोगाट) की कहानी है, जो अपनी बेटियों को कुश्ती में विश्व चम्पकरी बनाना चाहता है। हालांकि यह फिल्म पिता-बेटी के रिश्ते पर केंद्रित है, लेकिन इसमें पिता की भूमिका इतनी मजबूत है कि यह हर पिता-पुत्र के रिश्ते को प्रेरित करती है।

  • 102 नॉट आउट (2017): एक खुशमिजाज 100 से अधिक उम्र का बाप और चिंताओं में घिरा रहने वाला 70 साल का बेटा। पर्दे पर बाप-बेटे की ऐसी समीकरण कम ही देखी जाती है, जहां उम्र के हिसाब से जीने का जज्बा उल्टा हो जाता है।

  • संजू (2018): संजय दत्त की बायोपिक एक बाप और बेटे के रिश्ते को दिखाती है। हर कदम पर ल़ड़खड़ाते बेटे को सम्भालते पिता सुनील दत्त की भूमिका में परेश रावल थे और रणबीर बने थे संजय दत्त।

  • एनिमल (2023): वैसे तो रणबीर कपूर की यह फिल्म अपने पिता के लिए बेटे के ऑब्सेशन पर आधारित है, मगर कहानी का सार एक पिता का बेटे को वक्त ना दे पाना है। वक्त की यह कमी बेटे को पिता के ऑब्सेस्ड बना देती है, जिसे संदीप रेड्डी वंगा ने हिंसक ढंग से दिखाया है।

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आधुनिक बॉलीवुड में पिता अब केवल एक मार्गदर्शक नहीं, बल्कि एक दोस्त, सहयोगी और कभी-कभी अपने बच्चों की पसंद को समझने वाला इंसान बन गया है।

आज का बॉलीवुड पिता-पुत्र (Happy Father’s Day) के रिश्ते को और गहराई से उकेर रहा है, जिसमें न केवल पारंपरिक मूल्य, बल्कि आधुनिक समाज की भावनाएं और चुनौतियां भी शामिल हैं। यह रिश्ता, जो कभी समाज के दर्पण में झांकता था, अब समाज को दिशा दिखाने लगा है।